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बचपन की पहली मुलाकात

राजस्थान, पुरखौती हवेली, दिन का समय

पूरी हवेली को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था। और आज पूरा राजस्थान हवेली में आया हुआ था। चारों ओर ढोल बज रहे थे। खुशियों से नर्तकियाँ डांस कर रही थीं। बहुत सारी टोलियाँ बुलाई गई थीं। पूरे राजस्थान के हर छोटे-बड़े कस्बे और शहर से लोगों को बुलाया गया था। और सभी हवेली में होने वाले आज के समारोह में शामिल होने के लिए आए हुए थे।

सभी तरफ बाजे बज रहे थे और पूरी हवेली पर खुशियों भरा माहौल छाया हुआ था।

जी हां, आइए तो शुरू करते हैं फिर इस कहानी को। आज का दिन पूरे राजस्थान के लिए बहुत ही खास था, क्योंकि आज राजस्थान के राजा सूर्यांश प्रताप राणा के बेटे का दसवां जन्मदिन था। और उसके इस दसवें जन्मदिन पर ही उसे राजस्थान के छोटे हुकुम सा का सरताज पहनाया जाने वाला था, जिसके लिए दूर-दूर से काफी सारे पुरोहित, पंडित और विद्वानों को बुलाया गया था।

वही हवेली के बीच में हवन पूजा के लिए मंडप सजाया गया था, जिसमें सभी पंडितों द्वारा मंत्रोच्चारण किया जा रहा था।

और उसी हवन मंडप के सामने कुछ ही दूरी पर सिंहासन लगाए हुए एक उम्रदराज महिला बैठी हुई थी, जो कि राजस्थान की दाता हुकुम सा कल्याणी देवी जी थीं। पूरे राजस्थान में इनका ही सिक्का चलता था, जिनके चेहरे पर अलग ही रुआब दिख रहा था। और उनके दोनों तरफ दो आदमी खड़े हुए थे।

जिनमें से एक उनके सबसे खास आदमी भीष्म जी थे, जो बरसों से राणा परिवार की सेवा कर रहे थे। और इनके पूर्वजों ने वचन दिया था कि वे अपनी सात पीढ़ियों तक राणा परिवार के राजा की सेवा करेंगे। भीष्म जी 35 साल के थे, और उनका शरीर बिल्कुल कसा हुआ था। आज भी वह एक साथ 10-15 लोगों से भिड़ जाते थे। कसरत और पहलवानी में पूरे राजस्थान में इनको महारथ हासिल थी। और सबसे ज्यादा ये राजस्थान के दाता हुकुम सा कल्याणी देवी जी की हुकुम मानते थे।

तो वही कल्याणी देवी जी के दूसरी तरफ बैठे थे उनके बेटे देवराज प्रताप राणा। और उनके साथ उनकी बीवी अलखनंदा जी बैठी हुई थीं, जिनके चेहरे पर भी काफी ज्यादा घमंड झलक रहा था। और उनके साथ ही बैठे हुए थे देवराज जी के बेटे रुद्र और गौतम। और उनके साथ उनकी बीवियाँ और बच्चे भी बैठे हुए थे। रुद्र की पत्नी का नाम था रागिनी, और गौतम की बीवी का नाम था गौतमी। रुद्र और रागिनी की एक बेटी और एक बेटा था, जिनका नाम रूद्राणी और रोशन था। गौतम और गौतमी का एक बेटा था, जिसका नाम गर्व था। गौतम रुद्र से उम्र में बड़ा था।

वही हवन मंडप पर इस वक्त सूर्या और सोना राजस्थानी पोशाक पहने हुए बैठे थे, और दोनों के ही साथ उनका 10 साल का बेटा बैठा हुआ था। जिसके चेहरे पर सूर्य का तेज और हीरे सा नूर साफ झलक रहा था। देखने में वह किसी राजा महाराजा से कम नहीं लग रहा था। ऊपर से उसकी आँखों का वह तेज उसे और भी ज्यादा खतरनाक आभा दे रहा था। और वह बच्चा बिना किसी भाव के अपने माँ-बाप के साथ बैठा हुआ बस सिर्फ पंडित जी जो कह रहे थे वह कर रहा था। उसके चेहरे से साफ नजर आ रहा था कि उसे इस पूजा में बिलकुल भी मन नहीं लग रहा। और यही है हमारे राजस्थान के होने वाले छोटे कुंवर सा अद्विक प्रताप राणा।

और वही सूर्या और सोना के पीछे ही ओमकार और गौरी बैठे हुए थे। क्योंकि ओमी ने सूर्या का बचपन से साथ निभाया था, जिस कारण से सूर्या ओमी को अपने भाइयों से बढ़ कर मानता था। और उनकी गोद में एक छोटी सी प्यारी सी बच्ची बैठी हुई थी, जो अपनी आँखों में चमक लिए हुए सब को देख रही थी। और उसका नाम धृति था, जो कि सबसे छोटी थी और सबकी लाडली भी।

पूजा अभी चल ही रही थी कि तभी धृति अपना हाथ फैला कर आग की तरफ ले जाने की कोशिश करती है। तो अद्विक उसके हाथ को पकड़ कर रोकते हुए उसे घूर कर देखता है। तो 5 साल की धृति उसे आँखों में मासूमियत लिए हुए देखने लगती है।

जिस पर गौरी उससे कहती है - "तुम ज्यादा मासूम मत बनो, अपने भैया के सामने। उन्हें तुम्हारी सारी बदमाशी पता है। इसलिए चुपचाप बैठो।"

यह सुनकर सोना उससे कहती है - "गौरी दी, आप मुझे दे दो धृति को, मैं सामने बिठा लेती हूं।"

यह बोलकर वह उसे अपनी गोद में लेकर बैठ जाती है।

वही सूर्या एक नजर उनकी तरफ देखता है। और फिर सोना के सिर का दुपट्टा जो कि धृति के गोद में आने से खींच गया था, उसे ठीक करते हुए वापस पूजा पर ध्यान देने लगता है।

वही अब अग्नि में आहुति डाली जाती है, जिससे धुआँ फैलना शुरू हो जाता है। और धृति जो कि अब सोना की गोद में सामने बैठी हुई थी, उसके आँखों में भी धुआँ लगने लगता है। जिससे वह रोना शुरू कर देती है। तो सोना उसे चुप कराने लगती है। कि तभी गौरी उससे कहती है - "उसे मुझे दे दो सोना। शायद धुआँ उसकी आँख में चला गया है।"

यह सुनकर सोना हाँ में सिर हिला कर उसे उसकी गोद में देने लगती है। तो अद्विक उसे रोकते हुए कहता है - "मम्मा, उसे मुझे दीजिए। मैं उसे थोड़ी देर यहीं पर घुमा कर लाता हूं। आप लोग पूजा कंप्लीट कीजिए।" यह बोलकर वह खुद खड़ा हो जाता है।

और सोना की गोद से धृति को अपनी गोद में ले लेता है, और वहां से जाने ही वाला होता है कि तभी उसे सूर्या की ठंडी आवाज सुनाई देती है - "ज्यादा दूर नहीं जाना है अद्विक, हवेली से बाहर तो कदम भी मत रखना।"

यह सुनकर अद्विक पीछे मुड़कर सूर्या को देखता है, और हाँ में सिर हिला कर वहां से चला जाता है।

वही सूर्या उसके जाते ही भीष्म जी की तरफ अपनी ठंडी आँखों से देखता है तो भीष्म जी हाँ में सिर हिला कर वहां से चले जाते हैं।

वही आद्विक धृति को गोद में लिए हुए हवेली के बैक साइड एरिया में आ जाता है, जहां पर काफी सारे लोगों की भीड़ लगी हुई थी। और राजस्थानी खान-पान की दुकान भी सजाई गई थी। और साथ ही साथ राजस्थान के पारंपरिक कठपुतलियों का डांस भी हो रहा था। जिसे देख कर धृति आद्विक से कहती है - "भैयू, डॉल, डॉल देखने जाएंगे?"

तो उसकी बात सुनकर आद्विक एक नजर उस पूरी स्टॉल पर डालता है। और फिर उस तरफ बढ़ जाता है।

वहां पहुंचते ही आद्विक और धृति उस कठपुतली के डांस को देखने लगते हैं। वही आद्विक बहुत ही गौर से कठपुतलियों को देखने लगता है। और फिर उन कठपुतलियों को देखते हुए उसकी नज़रें उनकी डोर से होते हुए ऊपर की तरफ चली जाती हैं, जहां पर किसी के छोटे-छोटे हाथ उन कठपुतलियों की डोर को थामे हुए नचा रहे थे।

उन छोटी-छोटी हथेलियों को देख कर आद्विक बहुत ही गौर से उन हाथों को ही देखने लगता है, जो बहुत ही कोमलता से उन डोरों को थामे हुए थे। और तभी उसे एक छोटी सी बच्ची के गाने की आवाज सुनाई देती है। और दोनों गुड्डा-गुड्डी की कठपुतलियां डांस करना शुरू करती हैं।

वही आद्विक का पूरा ध्यान उन नन्ही-नन्ही हथेलियों पर ही टिका हुआ था। वह उन हथेलियों को थिरकते हुए बहुत ही गौर से देख रहा होता है। और धृति कठपुतली के डांस को देख कर तालियां बजाने लगती है।

तभी गाना और डांस खत्म होता है। और उस लड़की के हाथ भी थिरकते हुए रुक जाते हैं। और धीरे-धीरे वह हाथ पर्दे के अंदर चले जाते हैं, जिन्हें आद्विक अभी भी गौर से देख रहा होता है।

और ऐसे ही उस स्टॉल पर जमा हुई भीड़ धीरे-धीरे कम होने लगती है और फिर अब कहीं जाकर सबकी नजर अपने साथ में ही खड़े आद्विक और धृति पर जाती है, जिससे सभी हैरान रह जाते हैं और तुरंत अपना सिर झुका कर उनसे थोड़ी दूरी बना कर खड़े हो जाते हैं।

वही आद्विक उन सभी पर एक नजर डालने के बाद पर्दे की तरफ एक नजर देखता है। और फिर वहां से दूसरी तरफ चला जाता है।

तभी वह जैसे ही थोड़ी दूर पर जाता है, धृति उसे जिद करते हुए कहती है - "भैयू, भैयू, मुझे वो डॉल चाहिए।"

तो आद्विक उसकी बात सुन कर उससे अपनी ठंडी आवाज में कहता है - "चाचू तुम्हें दिला देंगे, उससे भी अच्छी और बड़ी वाली।"

पर धृति उससे अब भी जिद करने लगती है कि उसे वही डॉल चाहिए। और अब अपनी जिद के चलते वह रोना शुरू कर देती है। जिसे रोता देख कर आद्विक एक गहरी सांस लेता है और उससे कहता है - "ठीक है, चलो मैं तुम्हें वो डॉल दिलाता हूं, अब रोना बंद करो।"

यह सुनते ही धृति की आंखें चमक उठती हैं। और वह तुरंत आद्विक के गले में अपनी बाहें डाल कर खुश होने लगती है।

वही आद्विक उसे देख कर अपना सिर हिला देता है। और उसे लेकर उसी स्टॉल की तरफ वापिस चला जाता है।

और उस स्टॉल के पास जाकर अपनी ठंडी आवाज में कहता है - "कोई है?"

तो उसकी आवाज सुन कर अंदर से एक बच्ची उसे जरा सा अपना चेहरा निकाल कर झांक कर देखती है, जिसे आद्विक देखने लगता है। वही उस बच्ची की सिर्फ आंखें उसे नजर आ रही थीं, जो अपनी बड़ी-बड़ी पलकों को झपकाते हुए उसे ही देख रही थी।

तभी पीछे से एक औरत आकर उस लड़की के बाल पकड़ कर खींचते हुए उसे अंदर लेकर चली जाती है। जिससे आद्विक की आंखें सर्द हो जाती हैं। लेकिन वह कुछ कहे, इससे पहले उस दुकान पर एक आदमी आ जाता है। और आद्विक और धृति के रॉयल कपड़ों को देख कर वह समझ जाता है कि ये दोनों राजघराने से हैं। तो वह उनके सामने हाथ जोड़ कर सिर झुकाए हुए खड़ा हो जाता है। और उनसे पूछता है - "जी छोटे सरकार, कहिए क्या हुकुम है हमारे लिए?"

तो आद्विक, जो अभी भी उसी तरफ ही देख रहा था, जहां से वह औरत उस बच्ची को लेकर गई थी, वह उस आदमी की बात सुन कर उससे कहता है - "मेरी बहन को वो आपके वो दोनों गुड्डे और गुड़िया चाहिए। कीमत बताइए और मुझे वो दे दीजिए।"

यह सुन कर वह आदमी आंखों में लालच लिए हुए उसे देखने लगता है। और उससे जैसे ही कोई कीमत बोलने को होता है, तभी पीछे से एक छोटी सी बच्ची की फिर से आवाज आती है -

"नहीं, हम अपना बन्ना किसी को नहीं देंगे।"

यह सुन कर आद्विक की नजरें फिर से पर्दे के पीछे की ओर घूम जाती हैं।

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