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उसे कहिए, परदे के पीछे से बाहर आए......

तो आद्विक जो की अभी भी उसी तरफ ही देख रहा था , जहा से वो औरत उस बच्ची को लेकर गई थी । वह उस आदमी की बात सुन कर उससे कहता है - मेरी बहन को वो आपके वो दोनो गुड्डे और गुड़िया चाहिए । कीमत बताइए और मुझे वो दे दीजिए । । 

यह सुन कर वह आदमी आंखो में लालच लिए हुए उसे देखने लगता है । और उससे जैसे ही कोई कीमत बोलने को होता है की तभी पीछे से एक छोटी सी बच्ची की फिर से आवाज आती है । 

नही, हम अपना बन्ना को किसी को नही देंगे । । 

यह सुन कर आद्विक की नजरे फिर से परदे के पीछे की ओर घूम जाती है । । 

अब आगे 

उस बच्ची की आवाज पर आद्विक परदे के पीछे छुपी उस बच्ची को देखने लगता है । जो खुद भी अपनी बड़ी बड़ी आंखों से उसे देख रही थी । 

तभी वो औरत फिर से उसके पास आकर उसे पीछे खींचते हुए आंखे दिखा कर कहती है - तू चुप रह छोरी । दिख नही रहा क्या , खुद छोटे कुंवर सा हमारी दुकान पर पधारे है । ये तो हमारा सौभाग्य है की वो हमारी दुकान से कुछ लेना चाहते है । क्यों जी । 

यह बोल कर वह अपने पति की तरफ देखती है । तो उसके पति तुरंत हां में सिर हिलाते हुए उससे कहते है - हां हा बिलकुल । कुंवर सा आपको जो चाहिए आप ले सकते है । ।

वही वो बच्ची कस कर अपने गुड्डे और गुड़िया को अपनी बाहों में छुपा लेती है । । उसकी आंखो में आंसू भर आए थे । । और उसके सिसकने की आवाज बाहर तक सुनाई देने लगती है । । 

वही आद्विक उस बच्ची के रोने की आवाज सुन कर उस आदमी से कहता है - वो लड़की कौन है आपकी बेटी है क्या । और रो क्यों रही है । सामने बुलाइए उसे । 

तो उसकी बात सुन कर वह आदमी जिसका नाम हरीश था , वह आद्विक से कहता है - जी छोटे कुंवर , वो हमारी बेटी नही है । वो तो बस हमे कुछ रोज पहले ही मंदिर की सीढियों पर मिली थी । बेचारी के पास खाने को कुछ भी नही था । सिर्फ ये गुड्डा और गुड़िया ही थे । तो हमने इसे अपने साथ रख लिया । ।

यह बोलते हुए वह भोली सूरत बना लेता है । लेकिन असलियत में तो उसने उस बच्ची को मंदिर में गाते हुए सुना था । और उसकी आवाज पर सभी लोग मंत्रमुग्ध हुए खुद ब खुद ही भीड़ उसकी तरफ जमा होने लगी थी । । और उसके गुड्डे और गुड़िया का नाच देखने लगी थी । । 

और उसी भीड़ में से आए हुए कुछ लोगों ने उस बच्ची को पैसे भी दिए थे । और उसी पैसे के लालच में आकर हरीश और उसकी पत्नी लता ने उस बच्ची को अपने साथ रख लिया था । यह बोल कर की वह उसे उसके मां पापा से मिलवाने ले जायेंगे । । 

वही आद्विक हरीश जी की बात सुन कर उससे कहता है - तो आपने इसके माता पिता के बारे में पता क्यों नही करवाया । हो सकता है वे लोग इसे ढूंढ रहे हो । ।

तो उसकी बात सुन कर लता जी उससे कहती है - सरकार , हमने पता करने की कोशिश की थी । लेकिन ये बच्ची तो यहां की है ही नही । इसने तो कहा की ये कहीं दूसरे जगह से है । । और इसे खुद न मालूम की ये यहां कैसे पहुंच गई । फिर नन्ही सी जान थी हुकुम । तो हमे दया आ गई और हमने इसे अपने पास रख लिया । । 

आद्विक उनकी बात पर उनसे कहता है - आपके कोई बच्चे नही है क्या । 

तो लता जी तुरंत कहती है - नही नही कुंवर सा । मेरी खुद भी एक बेटी है न । ललिता,, यह कह कर वह अपनी बेटी को आवाज लगाती है । 

तो परदे के पीछे से उस बच्ची को ही उम्र की एक और बच्ची अपने हाथो में चॉकलेट पकड़े हुए बाहर आती है । 

वही आद्विक उस बच्ची को ऊपर से नीचे तक देखने के बाद दोबारा उस पहली बच्ची को देखते हुए कहता है - उसे कहिए परदे के पीछे से बाहर आए । । 

तो उसकी आवाज पर वह बच्ची कस कर परदे को पकड़ लेती है । उसे डर लग रहा था की उसके सामने खड़ा गुस्सैल लड़का उससे उसके गुड्डा गुडिया को छीन लेगा । । 

तभी लता जी आद्विक से कहती है - वो छोटे कुंवर सा । वो उसे लोगों से डर लगता है । आप मेरी बेटी से दोस्ती कर लीजिए ना । ये सबसे बहुत जल्दी घुल मिल जाती है । । 

लेकिन आद्विक उनकी बात को पूरी तरह अनसुना करते हुए उनसे अपनी ठंडी आवाज में कहता है - मैंने कहा उस लड़की को बाहर बुलाइए इसी वक्त । 

तो उसकी ठंडी आवाज पर लता जी और हरीश जी के पसीने छूटने लगते है । । 

और वह तुरंत उस बच्ची को परदे के पीछे से खींचते हुए आद्विक के सामने खड़ा कर देती है । । जिससे वह बच्ची कस कर अपनी आंखे भींच लेती है । वही आद्विक उस बच्ची को अब पूरी तरह से ऊपर से नीचे तक देखता है । उम्र तो दोनो बच्ची की लगभग 6 साल ही थी । लेकिन उस बच्ची ने ललिता के मुकाबले काफी गंदे और पुराने कपड़े पहने हुए थे । । और उसकी हालत भी थोड़ी सही नही दिख रही थी । । बाल भी सही ढंग से नहीं बनाए गए थे । शायद उसने खुद से ही अपनी दो छोटी बनाई थी जो की ढीली और टेढ़ी बनी हुई थी । । और एक पुरानी सी घाघरा चोली पहने हुई थी । जिसका घाघरा इतना पुराना था की नीचे की लेस फट चुकी थी । ।

वही उसके विपरीत ललिता ने नई घाघरा चोली पहनी हुई थी । जिसका दुपट्टा रेशमी था । और उसके बाल भी बिलकुल सलीके से संवरे हुए थे । । और वो पहली बच्ची के मुकाबले काफी तंदुरुस्त लग रही थी । । 

आद्विक दोनो बच्ची को अच्छे से देखने के बाद हरीश जी से कहता है - क्या नाम है इस लड़की का । । 

तो हरीश जी से पहले लता जी ही तुरंत कहती है - जी ललिता । ललिता नाम है मेरी छोरी का सरकार । ।

तो आद्विक उनके जवाब पर उनसे कहता है - आपकी छोरी का नही , मैं इस लड़की का नाम पूछ रहा हूं । क्या नाम है इस मंदिर वाली लड़की का । ।

तो उसकी बात सुन कर लता और हरीश जी एक दूसरे को देखने लगते है । पर उनके पास आद्विक के सवाल का कोई जवाब नही था । । क्योंकि वो बच्ची उन्हे जब से मिली थी तब से उन्होंने उससे बात ही करने की कोशिश नही की । सिर्फ उससे अपना फायदा निकाल कर दो वक्त की रोटी उसे दे देते थे । । और नाम के जगह पर वो लोग तो उसे अभी तक छोरी छोरी ही कहा करते थे । । 

वही उन लोगो को चुप देख कर आद्विक की आंखे थोड़ी सी सर्द हो जाती है । । और अब वह खुद उस बच्ची के पास जाकर उससे पूछता है - क्या नाम है तुम्हारा । । 

तो वह बच्ची घबरा कर उसे देखने लगती है । । वही आद्विक की गोद में बैठी धृति उससे कहती है - दीदी की चोटी खुल गई है भैय्यू । यह बोल कर वह उस बच्ची के चोटी की तरफ इशारा करती है । 

तो वह बच्ची अपने चोटियों को अपने हाथ से पकड़ लेती है । तो आद्विक धृति को वही टेबल पर बिठा कर उस लड़की को देखते हुए कहता है - तुम्हे सुनाई नही दिया । मैने पूछा नाम क्या है तुम्हारा । । 

तो इस बार वह बच्ची डरते हुए अपनी नजरे झुका कर धीमी सी मीठी आवाज में उससे कहती है - धरा,, धरा नाम है हमारा । । 

वही उसकी मीठी सी आवाज सुन कर आद्विक उससे पूछता है - अभी ये गाना तुम ही गा रही थी क्या । । 

तो धरा के कुछ कहने से पहले ही लता जी आद्विक से कहती है - नही नही कुंवर सा , गाना तो मेरी बेटी ललिता गा रही थी । । इस की आवाज में वो मिठास नही है । ये तो सिर्फ अपने इन गुड्डा गुडिया को नचवाती है । वो मधुर संगीत तो मेरी बेटी ललिता गा रही थी । । क्यों री छोरी । तू नही गा रही थी ना गाना । ।

यह बोल कर वह धरा को आंख दिखाने लगती है । जिससे धरा घबरा कर तुरंत हां में सिर हिला देती है । । 

लेकिन आद्विक तो धरा की आवाज सुन कर ही पहचान गया था की वो गाना धरा ही गा रही थी । । लेकिन वह इस बारे में उससे कुछ नही कहता है । और सीधे धरा से पूछता है - ये गुड्डा और गुड़िया तुम्हारा है । । 

तो धरा उसकी बात सुन कर सिर झुकाए हुए ही धीरे से हां में सिर हिला देती है । । 

तो आद्विक उससे कहता है - ये मेरी बहन है धृति । इसे तुम्हारे ये गुड्डा गुडिया बहुत पसंद आए । और इसे ये खरीदना है । क्या तुम इन्हें मुझे खरीदने दोगी । । 

तो धरा उसकी बात सुन कर उसे मना करने वाली होती है की तभी हरीश जी तुरंत बोल पड़ते है - हां हां कुंवर सा । क्यों नही , आप बिल्कुल रख सकते है । आपको जो भी कीमत देनी हो आप दे दीजिए । और ये गुड्डा गुडिया ले लीजिए । । 

वही उसकी बात सुन कर धरा उनसे कहती है - नही मैं नही दूंगी । ये मेरे पापा ने मुझे दिया था । मैं नही दूंगी । । 

वही उसकी बात पर लता और हरीश का दिमाग खराब हो जाता है । । और वह धरा को चिल्लाते हुए कहते है - तू चुप कर छोरी । ज्यादा जुबान न चला । और तुझे पता भी है कौन है जे । राजस्थान के कुंवर सा है । इनको मना करने का पाप करवाएगी के हमसे । 

यह सुन कर धरा चुपचाप सिसकने लगती है । । तो आद्विक हरीश और लता को अनदेखा कर धरा के पास जाकर उससे कहता है - तुम्हारे पापा ने दिया है तुम्हे ये । 

तो धरा बस अपना सिर हां में हिला देती है । जिस पर आद्विक उससे कहता है - पर अब मुझे ये चाहिए । क्योंकि मेरी बहन को ये पसंद आ गए है । और मेरी बहन को मैं किसी भी चीज के लिए कभी मना नही कर सकता । इसलिए चुपचाप इनकी कीमत बोलो और इन्हे मेरी बहन को दे दो । । यह बोलते हुए उसकी आवाज सख्त हो जाती है । । 

वही धरा उसकी कड़क आवाज पर डर कर दो कदम पीछे हो जाती है । । और फिर अपने हाथ में पकड़े हुए गुड्डा गुड्डी को देखती है । उसकी आंखो में आंसू भर आए थे । क्योंकि उसके मां पापा के उससे दूर होने के बाद एक यही उनकी आखरी निशानी थी । । पर आद्विक की कड़क आवाज से वह डर जाती है । । और फिर अपने दोनो गुड्डे में से गुड्डा को अपने पास रख कर गुड़िया को धृति की तरफ बढ़ाते हुए धीरे से अपनी मासूम सी आवाज में कहती है - ये हमारी गुड़िया है, आप इसे रख लीजिए । एक को बस हमारे पास रहने दीजिए । आप चाहे तो इसके पैसे भी मत दीजिए , पर दोनो को हमसे मत छीनिए । । 

यह बोलते हुए भी उसकी आंखो में आंसू भरे हुए थे । । 

वही धृति तुरंत उसके हाथो से गुड़िया को ले लेती है । और खुश होकर उस गुड़िया को अपनी चमकती हुई आंखो से देखने लगती है । । 

लेकिन हरीश जी और लता की आंखे गुस्से से भर चुकी थी धरा की कीमत न देने वाली बात सुन कर । 

वही आद्विक धरा को देखता है जो की चुपचाप सिर झुकाए हुए रो रही थी । और कसकर अपने गुड्डे को थामा हुआ था । । 

उसे नजर भर  देख कर आद्विक अपने गले में पहली असली मोतियों की माला को निकाल कर वही टेबल पर रखते हुए कहता है - आद्विक राणा है हम । सूर्या राणा के बेटे । कोई भी चीज मुफ्त में लेना हमारी परंपरा नहीं है । । तुम्हारे गुड़िया की कीमत । यह बोल कर वह धृति को अपनी गोद में उठा लेता है । । और धरा को एक नजर फिर से देख कर वहां से चला जाता है । । 

To be continued.....

अब कब होगी धरा और आद्विक की अगली मुलाकात । जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ । । 

Thankyou for reading....

Shivi.....💓

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